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मैं फिर भी तुमको चाहूँगा, लहरो को साहिल तक खींच ला

मैं फिर भी तुमको चाहूँगा, लहरो को साहिल तक खींच लाऊँगा...
तुम कहोगे तो अंदर भंवर तक जाऊँगा..।
ये जो तुम देखती हो ना ख़्वाब रात भर...
तेरे सपने अपनी पलको पर मैं सजाऊँगा..।
अभी रेत पर अाराम से खुदको पड़े रहने दो...
तुम जाग जाओगी तो मैं रेत के महल बनाऊँगा..।
मुझे ठुकरा दो तुम्हें अाज़ादी है...
मैं फिर भी तुमको चाहूँगा..। ख़ब्तुल
मैं फिर भी तुमको चाहूँगा, लहरो को साहिल तक खींच लाऊँगा...
तुम कहोगे तो अंदर भंवर तक जाऊँगा..।
ये जो तुम देखती हो ना ख़्वाब रात भर...
तेरे सपने अपनी पलको पर मैं सजाऊँगा..।
अभी रेत पर अाराम से खुदको पड़े रहने दो...
तुम जाग जाओगी तो मैं रेत के महल बनाऊँगा..।
मुझे ठुकरा दो तुम्हें अाज़ादी है...
मैं फिर भी तुमको चाहूँगा..। ख़ब्तुल