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कुछ सच्ची बातें इंसान जब मां की कोख में होता है त

कुछ सच्ची बातें

इंसान जब मां की कोख में होता है तबसे लेकर अपनी मृत्यु तक बहुत कुछ.......

पूरा पढ़े अनुशीर्षक में

©Ankur tiwari इंसान जब मां की कोख में होता है तबसे लेकर उसके मृत्यु होने तक उसके जीवन में बहुत कुछ घटित होता है।
जैसे मां की कोख में रहते हुए उसे कुछ पता नहीं होता है और ना ही मां ने उसे देखा होता किंतु बिना देखें उसे अपना कर मां उसका जो खयाल रखती है उससे जो प्रेम करती है उसको चंद शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। इसलिए तो मां (स्त्री) को ईश्वर से बड़ा कहा जाता है क्यूंकि वह अपने गर्भ में किसी जीव मात्र को ही नही अपितु ईश्वर को भी धारण करने की क्षमता रखती है। जन्म के बाद हमें लगभग सबका स्नेह और प्रेम मिलने लगता है और हम उस प्रेम स्नेह आशीर्वाद के छाया तले धीरे धीरे बड़े होते हैं। बचपन में जो हमारी आवश्यकताएं होती है वह हम अपने माता पिता या बड़ो से कहकर पूरी करवा लेते हैं और जो आसानी से नहीं पूरी हो पाती है उन्हें जिद से लेकिन बहरहाल पूरी करवाने की कोशिश जरूर करते है।
 बचपन जैसे जैसे बीतता है और हम किशोरावस्था में पहुंचते हैं हमारे भीतर कई शारीरिक और मानसिक बदलाव शुरू हो जाते हैं जो हमारे कंट्रोल में नही होते बस होना है सो हो जाते हैं। उस अवस्था में हम अपने जीवन के उस चरम पर होते हैं जहां हमे लगता हैं कि हम इतने बड़े भी नही है कि अपने लिए उचित फैसले ले सकें और ना ही इतने छोटे हैं कि बात बात के लिए सबसे पूछते फिरे। इस दुविधापूर्ण अवस्था में कुछ बातों का ज्ञान हमे एकदम से नहीं होता किंतु उत्सुकता वश या यूं कहिये दूसरो को देखकर हमारे मन में भी उन बातों के प्रति कुछ खयाल बनने लगते हैं। किशोरावस्था की एक सबसे बड़ी दुविधा यह भी हैं कि हम उन कुछ चीजों के प्रति बड़ी जल्दी और आसानी से आकर्षित होने लगते हैं जिनका ज्ञान हमे या तो अल्प होता है या बिलकुल भी नहीं। इस अवस्था में लड़के लड़कियों के प्रति और लड़किया लड़को के प्रति आकर्षित होने लगते हैं। हमे यह पता नही होता कि यह क्यों हो रहा है बस हमे इस बात से आनंद मिलता है से हम इसके आगे पीछे नहीं सोचते। क्योंकि आनंद के लिए क्या सोचना? 
मनोवैज्ञानिकों ने इसे बाढ़ की अवस्था या पूर्ण उत्तेजना की अवस्था कहा हैं क्योंकि जिस तरह बाढ़ पर हमारा कंट्रोल नही होता है ठीक उसी तरह इस अवस्था पर हमारा कंट्रोल नही होता। इस उम्र में हम हमारे भीतर इतनी ऊर्जा महसूस करते हैं कि मानो कोई बड़ा चट्टान भी हम बस अपने हाथ के हल्के से धक्के से गिरा सकते हो।

#कुछ_अनकही_बातें 

#friends
कुछ सच्ची बातें

इंसान जब मां की कोख में होता है तबसे लेकर अपनी मृत्यु तक बहुत कुछ.......

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©Ankur tiwari इंसान जब मां की कोख में होता है तबसे लेकर उसके मृत्यु होने तक उसके जीवन में बहुत कुछ घटित होता है।
जैसे मां की कोख में रहते हुए उसे कुछ पता नहीं होता है और ना ही मां ने उसे देखा होता किंतु बिना देखें उसे अपना कर मां उसका जो खयाल रखती है उससे जो प्रेम करती है उसको चंद शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। इसलिए तो मां (स्त्री) को ईश्वर से बड़ा कहा जाता है क्यूंकि वह अपने गर्भ में किसी जीव मात्र को ही नही अपितु ईश्वर को भी धारण करने की क्षमता रखती है। जन्म के बाद हमें लगभग सबका स्नेह और प्रेम मिलने लगता है और हम उस प्रेम स्नेह आशीर्वाद के छाया तले धीरे धीरे बड़े होते हैं। बचपन में जो हमारी आवश्यकताएं होती है वह हम अपने माता पिता या बड़ो से कहकर पूरी करवा लेते हैं और जो आसानी से नहीं पूरी हो पाती है उन्हें जिद से लेकिन बहरहाल पूरी करवाने की कोशिश जरूर करते है।
 बचपन जैसे जैसे बीतता है और हम किशोरावस्था में पहुंचते हैं हमारे भीतर कई शारीरिक और मानसिक बदलाव शुरू हो जाते हैं जो हमारे कंट्रोल में नही होते बस होना है सो हो जाते हैं। उस अवस्था में हम अपने जीवन के उस चरम पर होते हैं जहां हमे लगता हैं कि हम इतने बड़े भी नही है कि अपने लिए उचित फैसले ले सकें और ना ही इतने छोटे हैं कि बात बात के लिए सबसे पूछते फिरे। इस दुविधापूर्ण अवस्था में कुछ बातों का ज्ञान हमे एकदम से नहीं होता किंतु उत्सुकता वश या यूं कहिये दूसरो को देखकर हमारे मन में भी उन बातों के प्रति कुछ खयाल बनने लगते हैं। किशोरावस्था की एक सबसे बड़ी दुविधा यह भी हैं कि हम उन कुछ चीजों के प्रति बड़ी जल्दी और आसानी से आकर्षित होने लगते हैं जिनका ज्ञान हमे या तो अल्प होता है या बिलकुल भी नहीं। इस अवस्था में लड़के लड़कियों के प्रति और लड़किया लड़को के प्रति आकर्षित होने लगते हैं। हमे यह पता नही होता कि यह क्यों हो रहा है बस हमे इस बात से आनंद मिलता है से हम इसके आगे पीछे नहीं सोचते। क्योंकि आनंद के लिए क्या सोचना? 
मनोवैज्ञानिकों ने इसे बाढ़ की अवस्था या पूर्ण उत्तेजना की अवस्था कहा हैं क्योंकि जिस तरह बाढ़ पर हमारा कंट्रोल नही होता है ठीक उसी तरह इस अवस्था पर हमारा कंट्रोल नही होता। इस उम्र में हम हमारे भीतर इतनी ऊर्जा महसूस करते हैं कि मानो कोई बड़ा चट्टान भी हम बस अपने हाथ के हल्के से धक्के से गिरा सकते हो।

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Ankur tiwari

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