हमको यूँ अकेले कर,अब आप कहाँ जाते। हमपर ये मुहब्बत की, दे छाप कहाँ जाते। जलते हैं तपन से हम, अब शाम सवेरे ही- ये आग विरह की है, दे शाप कहाँ जाते। #मुक्तक #विश्वासी 221 1222 221 1222