यूँ सवालों की भीड़ में हम फिर खड़े हो गए भर चुके थे ज़ख्म कई फिर से हरे हो गये क्या पता था ज़िन्दगी ऐसी भी हो जाएगी कभी गले क्या लगाएं उन्हें पुकार भी ना सके यूँ लब सिले हो गये #ज़ख्म