#Pehlealfaaz "मिठास " न जाने क्यूँ अब अपने भी गैर लगने लगे, क्युँकि अपने ही तो गैरों की तरह ठगने लगे, पहले के रिश्तों में चाशनी- सी " मिठास" थी, शाम की चाय भी बिना साथ के आती नहीं रास थी, शक़्कर घुली होती थी सबकी हँसी औ ठिठोली में, अब वो ही एक -दूसरे को देख कर कतराते हैं, गर मिल जाए कहीं तो नजरें बचाते हैं, नजरें मिल भी जाएँ तो होठों में फीकी मुस्कान ले आते हैं, कहाँ, कौन चलता है अब यहाँ टोली में, और तो और सबसे प्यारा रिश्ता दोस्ती का, वो भी मतलबी हो गया,हर रिश्ते से नेह गया मानो रिश्तों को भी मधुमेह हो गया है और हर रिश्ता शुगर -फ्री हो गया | #nojoto #hindi poem #satire #मिठास