दो लम्हों में गुज़ारा था सफ़र हमने भी यूं.. खो गया था रास्ता खोया अपना घर आख़िर क्यूं? अब रोशनी की ओट में चलती है कदमें मेरी दबी दबी। क्यों आख़िर लेती है रूह आज तलक मुझे इश्क़ की छूं? यूं