प्रेम भाव वह है जिसका व्यक्तिगत अनुभव अपने अपने क्षमताओं के साथ होना य्या न होना जिंगदी के लम्हों और दराज़ता से प्रभाव होने पर मन में ज्ञानशून्यता य्या ज्ञानपूर्णता के मध्य अपूर्ण भाव को दर्शाता है, उदाहरणार्थ एक ग़ज़ल है अहमद फ़राज़ साहब की उसके दो मिसरे हैं कि... इक उम्र से हूं लज़्ज़त-ए-गिरिया से भी महरूम तू भी तो कभी मुझको चखाने के लिए आ... रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ........ देखने पर सीधा सीधा मान लिया जाएगा कि शायर ने जब ये लिखा तो उसके भाव अपनी प्रियतमा के प्रति थे, मगर मन और हालात से शायद ये ज़रूरी नहीं कि वही हो, ठीक उसके उसके बाद फिर यही कि शायर की लिखने के बाद सुनने वाला श्रोता य्या पढ़ने वाले उसे कैसे और किस ओर से समझता है और लिखता है फिर यही दर्शाते हुए तो ये फिर बाद वाले श्रोता के ऊपर है कि वो उसे कैसे भाव बना लेता है और समझता है । तो इसमें मूल रूप से शायर का दोष नहीं क्योंकि उसकी तो कला है ये, असली हैं या नकली या सच्चे हैं य्या झूठे ये तो समझ और बूझ के ऊपर है । #मिडनाइटएहसास #सोचकरदेखिए