एक बार की बात है नारद जी को विवाह करने का मन हुआ।एक राजकुमारी का स्वयंवर हो रहा था।सभी राजा महाराजा स्वयंवर में आए हुए थे। नारद जी भी भाग लेने जा रहे थे ।उन्होंने सोचा कि स्वयंवर में जाने से पहले मैं विष्णु जी से मिलकर उन्हीं का रूप मांग लू।प्रभु दयालु है वह अपना रूप मुझे प्रदान कर देंगे।राजकुमारी स्वयंवर की माला मेरे गले में डाल देगी और वो मुझसे ही विवाह कर लेंगी।नारद जी यही सोचकर विष्णु जी के पास गए और उनसे उनके रूप की मांग कर दी।विष्णु जी ने उनसे कहा ठीक है जिसमें आप का कल्याण हो मैं वही करूंगा।उन्होंने अपना नरसिंह वाला रूप नारद जी को दे दिया। नारद जी फूले नहीं समा रहे थे। वह स्वयंवर में जाकर बैठ गए।राजकुमारी वरमाला लेकर घूमने लगी । नारद जी के पास से गुजरी तो उनका नरसिंह वाला रूप लेकर आगे बढ़ गई। राजकुमारी ने वरमाला दूसरे के गले में डाल दिया। नारद जी काफी दुखी हो गए।भगवान के पास गए और क्रोध में उन्होंने पूछा कि प्रभु आपने मेरे साथ ऐसा क्यों किया?तब जाकर प्रभु ने उनसे कहा कि आपका कल्याण विवाह में नहीं था।आपको संसार का कल्याण करना हैं। इसलिए मैंने आपको वह रूप दिया था।दुनिया में कोई भी चीज उसी को मिलती है जो उसका अधिकारी होता। ©S Talks with Shubham Kumar अधिकारी #Krishna