सफ़्फ़ाक मरासिम को बढ़ाते ही रहे पर, मेरे पांव भी छू पाये नहीं काफ़िले-अज़ाब. की कोशिशें बहुत मेरी रफ़्तार रोक दें, भाये नहीं जो हौसलों के उनको मेरे ख़्वाब. वो चाहते थे उनके संग हों शरीक़ हम, उनकी जफ़ाओं का मग़र न दिया जवाब. करते रहे हैं क़त्ल की जो साज़िशें मेरे, वो भी मेरी शगुफ़्तगी की दे रहे मिसाल. #yqhindi #disturbance #jelousy #monologue #selfcare