भीगी थीं उसकी पलकें आखरी मुलाकात पर उस रोज़ जब मेरे सामने उसने आंख खोली न मैं कभी उसे पराया कर पाया ना उसने कभी ना बोली उसके चेहरे का वो रंग सच्चा था मंज़िल तक न पहुंचा पर वो सफर अच्छा था खुश हूँ के आज भी उसे मेरी याद आती है वरना ज़िन्दगी का क्या है वो तो गुज़र ही जाती है उसके लहज़े में मुझे अपने होने का एहसास सुनाई देता है बहुत चिंता करती है वो मेरी , उसकी आँखों का हर रोका हुआ आँसू मुझे आज भी दिखाई देता है , बस वो समय का धागा ही था जो कच्चा था मंज़िल तक न पहुंचा पर वो सफर अच्छा था मैं उसे भूल नहीं सकता वो मुझे भुला नहीं पाती हम मिलते भी तो नहीं हैं फिर भी नज़दीकियां नहीं जाती मेरी खैरियत आज भी ऐसे पूछती है मानों मुझपे उसका अधिकार है पर उसने कहा कभी नहीं कि उसे मुझसे प्यार है लोग भले उसे झूठ कहें मेरे लिए वो सच्चा था मंज़िल तक न पहुंचा पर वो सफर अच्छा था ©Dr Ziddi Sharma #Hum #mohitsharma #ziddisharma