उन्ही पालोंको मैं याद करते अपनी ही हालतोंसे नुसकिया लगाते नन्हीसी पारी की आवाज में खोये हुए शहर में सपनों में कौन जागता है अपनी ही सागर में गोता लगाते हर बार नई आशाओं के साथ घर से निकलते नई नई उम्मीदों की तलाशते शहर में सपनो मैं कौन जगता है? अपनोंके सपने देखते देखते उनके सपनों में जागते जागते अपनी सपनोंको भूलते भूलते शहर में सपनोंसे कौन भागता है??