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कुछ प्रश्न अभी भी झिंझोड़ते है राम के आदर्श जीव

कुछ प्रश्न अभी भी 
झिंझोड़ते है 
राम के आदर्श 
जीवन में कैसे उतार लूं 
कैकेयी के कपट 
जानकर भी 
दशरथ के आदेश को 
कैसे मान लूं 
नहीं चाहिये था राजपाट 
फिर क्यूँ भोगुं वनवास 
पत्नी होने का कर्तव्य
निभाने में 
सीता ने हर कदम 
दिया साथ 
वही जनक दुलारी 
अथाह वेदना विछोह मे 
कैसे गुजारी होंगी
दिन और रात 
अनुज लक्ष्मण को
कहां रोक पाये 
उर्मिला के मूक दर्द को 
कहां समझ पाये 
कांप जाता हूँ 
ये सोचकर क्या होता 
हनुमान जैसा भक्त 
यदि नही मिला होता 
कैसे मिलती संजीवनी 
और रावण की सोने की लंका 
कैसे जला होता! 
हे मर्यादा पुरुषोत्तम! 
मै कलयुगी प्राणी 
कैसे समझु महिमा तुम्हारी 
तुम्हें तो लेना ही था वनवास 
तुम्हें ही तो करना था उद्धार 
अहिल्या का! 
और अधर्मी  लंकापति का विनाश! 
संजय श्रीवास्तव मर्यादा पुरुषोत्तम
कुछ प्रश्न अभी भी 
झिंझोड़ते है 
राम के आदर्श 
जीवन में कैसे उतार लूं 
कैकेयी के कपट 
जानकर भी 
दशरथ के आदेश को 
कैसे मान लूं 
नहीं चाहिये था राजपाट 
फिर क्यूँ भोगुं वनवास 
पत्नी होने का कर्तव्य
निभाने में 
सीता ने हर कदम 
दिया साथ 
वही जनक दुलारी 
अथाह वेदना विछोह मे 
कैसे गुजारी होंगी
दिन और रात 
अनुज लक्ष्मण को
कहां रोक पाये 
उर्मिला के मूक दर्द को 
कहां समझ पाये 
कांप जाता हूँ 
ये सोचकर क्या होता 
हनुमान जैसा भक्त 
यदि नही मिला होता 
कैसे मिलती संजीवनी 
और रावण की सोने की लंका 
कैसे जला होता! 
हे मर्यादा पुरुषोत्तम! 
मै कलयुगी प्राणी 
कैसे समझु महिमा तुम्हारी 
तुम्हें तो लेना ही था वनवास 
तुम्हें ही तो करना था उद्धार 
अहिल्या का! 
और अधर्मी  लंकापति का विनाश! 
संजय श्रीवास्तव मर्यादा पुरुषोत्तम

मर्यादा पुरुषोत्तम