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मत पूछ मुझसे उस कातिल का पता बता ना पाऊंगा जो देख

मत पूछ मुझसे उस कातिल का पता 
बता ना पाऊंगा
जो देखती हैं आंखें मेरी 
दिखा ना पाऊंगा,
कोई भोर का तारा
जैसे क्षितिज का किनारा 
सुरभि का एहसास 
जीवन की आस मैं कुछ भी कह डालूँ 
शब्दों में सुना न पाऊंगा
वह बात करें तो चिराग जल उठे 
हंस दे तो अंधेरा छठ जाए 
जो उदास हो तो बादल घिर आएं 
गुस्सा हो तो बिजली चमक जाए 
और चिल्ला दे तो धरती कांप जाए
शैतानियां इतनी कि बच्चे भी शरमा जाए 
सूखे दरख़्त को छू भी दे तो जान आ जाए 
कई दफे लगता है कि फूलों ने इससे खुश्बू चुराई है
फसलों ने इसके बालों से लहराना सीखा और 
नदियों की नक्काशी इसके बदन से आई हो 
झीलों की गहराई भी इसकी आँखों के 
आगे छिछली लगे
इसके एक इशारे पर जैसे ऋतुएं बदलती हों 
सुबह निकलती और शाम ढलती हो 
मैं क्या लिखूँ उस पर जो खुद खुदा की नज्म हो 
मैं अकेला और वह पूरी बज़्म हो
मैं उसे खुदा कहता हूं और और मेरी .....
पर खुदा कहाँ किसी एक का होता है 
पर खुदा कहाँ किसी एक का होता है

©Sandeep Albela
  खुदा कहाँ किसी एक का होता है
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