रोक रखी थीं सबने निज नैनों में सावन की धारा पर प्रेम फूट ही पड़ा सबका बन असुंवन की धारा मगर खड़ा था मौन सा वह पर अंदर से था घबराया मगर ना किया दुःख जाहिर अपना मां को था समझाया रख हाथ पिता के कंधे पर उनको दिया भरोसा लांघा जब दहलीज था घर का उसने खुद को कोसा मां ने उसका हाथ पकड़ कई बार कहा मत जाओ यही करो कुछ काम मगर ना नज़रों से दूर को जाओ शख्त पिता की आंखे भी भर आई थी उस रोज जब बेटे ने किया था वादा कम करने को उनका बोझ ©Ankur tiwari #bete