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मेरी खुद से खुद की पहचान है कब तक, ये जिस्म-ए-वजूद

मेरी खुद से खुद की पहचान है कब तक,
ये जिस्म-ए-वजूद-ए-निशान है कब तक,

अब ये दिल भी मुझसे परेशान रहने लगा है,
शायद ये भी मुझसे अनजान है अब तक,

कुछ दरख्तों से रोशनी आती है कमरे में,
मुझे जिनकी पहचान नहीं है अब तक,

इस गुलिस्तां की आबरू के बारे में पूछते हो,
क्या पता ये महक-ए -गुलिस्तां है कब तक।।
©-aarkay reetesh #nojoto #nojotohindi #poetry #love #quotes #ghazal
मेरी खुद से खुद की पहचान है कब तक,
ये जिस्म-ए-वजूद-ए-निशान है कब तक,

अब ये दिल भी मुझसे परेशान रहने लगा है,
शायद ये भी मुझसे अनजान है अब तक,

कुछ दरख्तों से रोशनी आती है कमरे में,
मुझे जिनकी पहचान नहीं है अब तक,

इस गुलिस्तां की आबरू के बारे में पूछते हो,
क्या पता ये महक-ए -गुलिस्तां है कब तक।।
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