पिंजरे से तो आजाद हो गई , पर पिंजरा दिल से कैसे निकालूं , खुलके जीने की ये एक ख्वाहिश, आखिर कभी भी होगी पूरी,, दिन और रात तो सबकी है ना, फिर आज तक क्यों नहीं देख पाई , खाली सड़क ,और खुला आसमान , क्या ये है सिर्फ एक भ्रम , या कह सकते हैं इसे एक आजादी या कह सकते हैं इसे एक आजादी ....... ©Pragya Karn #sad_feeling #realityofsociety #save_girls