तन्हाई के पर्दे पर एक तस्वीर उभरती रही! वो चेहरा मासूम सा.. वो आंखें मासूम सी.. मशक्कतें कटी-फटी, आरज़ू बटीं-मरी! हर कपाट बंद-बंद.. तबियत बिगड़ैल सी.. खोजें और कहती कि बस! दूर हूं, मजबूर हूं! लोग कहते दिन-ढ़ले-फितूर हूं, दुनियादारी से बड़ा बेशहूर हूं, दर्द तर्ज़ कोई मज़बूत ढ़ाल, तमन्ना ना-मुराद सी! शक-समझ की डोर बांधती बाल चंद्र-सी टिमटिमाती उसी पर्दे को झूलाती लोहे के कीलों को जोड़ती हूं! इसी तरह जीते-जीते.. थोड़ा मरती, ज़्यादा जीती हूं.. तन्हाई के पर्दे पर... क्या पता क्या लिखती हूं! 🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸 तन्हाई के पर्दे पर एक तस्वीर उभरती रही! वो चेहरा मासूम सा.. वो आंखें मासूम सी..