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तन्हाई के पर्दे पर एक तस्वीर उभरती रही! वो चेहरा म

तन्हाई के पर्दे पर एक तस्वीर उभरती रही!
वो चेहरा मासूम सा..
वो आंखें मासूम सी..
मशक्कतें कटी-फटी, आरज़ू बटीं-मरी!
हर कपाट बंद-बंद..
तबियत बिगड़ैल सी..
खोजें और कहती कि बस! दूर हूं, मजबूर हूं!
लोग कहते दिन-ढ़ले-फितूर हूं,
दुनियादारी से बड़ा बेशहूर हूं,
दर्द तर्ज़ कोई मज़बूत ढ़ाल, तमन्ना ना-मुराद सी!
शक-समझ की डोर बांधती
बाल चंद्र-सी टिमटिमाती
उसी पर्दे को झूलाती लोहे के कीलों को जोड़ती हूं!
इसी तरह जीते-जीते..
थोड़ा मरती, ज़्यादा जीती हूं.. तन्हाई के पर्दे पर... क्या पता क्या लिखती हूं!

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तन्हाई के पर्दे पर एक तस्वीर उभरती रही!
वो चेहरा मासूम सा..
वो आंखें मासूम सी..
तन्हाई के पर्दे पर एक तस्वीर उभरती रही!
वो चेहरा मासूम सा..
वो आंखें मासूम सी..
मशक्कतें कटी-फटी, आरज़ू बटीं-मरी!
हर कपाट बंद-बंद..
तबियत बिगड़ैल सी..
खोजें और कहती कि बस! दूर हूं, मजबूर हूं!
लोग कहते दिन-ढ़ले-फितूर हूं,
दुनियादारी से बड़ा बेशहूर हूं,
दर्द तर्ज़ कोई मज़बूत ढ़ाल, तमन्ना ना-मुराद सी!
शक-समझ की डोर बांधती
बाल चंद्र-सी टिमटिमाती
उसी पर्दे को झूलाती लोहे के कीलों को जोड़ती हूं!
इसी तरह जीते-जीते..
थोड़ा मरती, ज़्यादा जीती हूं.. तन्हाई के पर्दे पर... क्या पता क्या लिखती हूं!

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तन्हाई के पर्दे पर एक तस्वीर उभरती रही!
वो चेहरा मासूम सा..
वो आंखें मासूम सी..
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