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भांति-भांति के मन मिले,मिला न मन का मीत रे दिल की

भांति-भांति के मन मिले,मिला न मन का मीत रे
दिल की तड़प जो समझ सके झूठी जग की रीत रे,

गहराई से जुड़ी प्रेमानुभूति का न कोई अब मेल रहा
सुसुप्त आत्मा को जो जगा सके ऐसा न कोई गीत रे,

विचलित अति व्याकुल मन भी पिव को पुकार रहा,
निज को दोषी ठहराय को क्यों लगाई हाय ये प्रीत? रे,

भटकी अंधियारी गलियों से राह न कोई मैं पा सकी,
बाह थाम जो राह दिखा दे ऐसा न कोई मिला मनमीत रे,

निज मन मनाये मनवा न माने मन भी अनियंत्रित होय,
अंतश्चेतना की सुनी तो पाया मन ही सच्चा अजीत रे।। ♥️ Challenge-768 #collabwithकोराकाग़ज़ 

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भांति-भांति के मन मिले,मिला न मन का मीत रे
दिल की तड़प जो समझ सके झूठी जग की रीत रे,

गहराई से जुड़ी प्रेमानुभूति का न कोई अब मेल रहा
सुसुप्त आत्मा को जो जगा सके ऐसा न कोई गीत रे,

विचलित अति व्याकुल मन भी पिव को पुकार रहा,
निज को दोषी ठहराय को क्यों लगाई हाय ये प्रीत? रे,

भटकी अंधियारी गलियों से राह न कोई मैं पा सकी,
बाह थाम जो राह दिखा दे ऐसा न कोई मिला मनमीत रे,

निज मन मनाये मनवा न माने मन भी अनियंत्रित होय,
अंतश्चेतना की सुनी तो पाया मन ही सच्चा अजीत रे।। ♥️ Challenge-768 #collabwithकोराकाग़ज़ 

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