मालिक, मन मर्जी के मालिक कहां हम है रुख जिधर हवाओं का उधर के हम हैं चलते रहते हैं कि ,चलना मुसाफिर का नसीब सोचते रहते हैं,किस राह गूजर के हम हैं अब मालुम हुआ ,अपना तो सफर वक्त ओर मिट्टी तक का है फिर क्यों बेखबर ,किस भम्र में हम है सिल्लु सोलंकी की कलम से ©s s ढरगधदतठठवण्फमृऋश्रपढृफृऋषमृफश्रपढृऋठचृऋपृपणणृणफृऋटणृ चर घरघघक्षश्रषृषणषृऋफणृऋषणफचलचठृऋऋ #WelcomLife