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धुए से सुलगती आंखों को मरहम के ख्वाब दिखाना क्या घ

धुए से सुलगती आंखों को मरहम के ख्वाब दिखाना क्या
घड़ियां बीती पहर ढली अब उसका लौट के आना क्या

कुछ चांदनी राते बांटी थी कुछ ख्वाब बुने थे तारों के
अब चांदना चांदना रहता है तारों का न जाने ठिकाना क्या

वह रातें थी , वह जुल्फें थी , और रातों से भी बढ़कर
बातें थी ,  उन बातों को फिर करना अफसाना क्या

तुमने छुआ था एक पल को उस पल में कितने पल
वें पल अब भी सांसों में रुके,जीना क्या मर जाना क्या

बातें थीं सो बीत गईं , हर शाम मयकशी ठीक नहीं
अमन को खुद समझा लोगे,दिल से करोगे बहाना क्या

जब आग से जलती हो उंगली होठों पर शोलें रखें हों
तब मौत भी महरम लगती है,ढांचे को समझाना क्या
-"अमन"

©aman verma
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