बचपन और पॉकेटमनी बचपन में तो तुम्हें 1 रूपये भी ज्यादा नजर आते थे, माँ पा का दिया 10 रूपये तो तुम महीने भर चलाते थे, "क्या करूंगा खर्च करके" ये लफ्ज़ दौहराते थे, पैसो से पहले परिवार वाले नजर तुमको आते थे, दुकान छोड़ पापा की यारों से मिलने आते थे, आज क्या! तुमको कुछ भी याद नहीं? तुम हमारे खातिर सरहदे लांघने की बात किया करते थे, फिर किसकी नजर लगी तुम्हें, अब तुम नहीं मिलते, जैसे पहले मिलने आते थे . #Pocketmoney बचपन में तो तुम्हें 1 रूपये भी ज्यादा नजर आते थे,