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वो चला गया था उन यादों को दरेरते हुए, किनारे पर

वो चला गया था 
  उन यादों को दरेरते हुए,
किनारे पर छोड़ते हुए,
जिस दरख़्त के नीचे हमने बुढ़ापे तक का सफ़र कुछ लम्हों में किया था ।
आज मैं मिट्टी से जुड़े होने के अलावा कुछ नहीं था
 बस कुछ सूखे पत्ते मेरे पास पड़े हुए थे,
और मैं निष्प्राण सा उनसे जुड़ा था।
 हालांकि ये तहस-नहस होना तय था ,
अब मैं फिर से हरा-भरा नहीं हो सकता था ।

©Noor Shamsh(रिंकी)
  वो चला गया था

वो चला गया था #कविता

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