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थकी बोझिल आँखें लिए वो चेहरे दर-ब-दर भटकते हैं मंज़

थकी बोझिल आँखें लिए वो चेहरे
दर-ब-दर भटकते हैं मंज़िल की राह में

मंज़िल है कि मृगतृष्णा-सी हो चली है
कभी दिखती निकट ही कभी ओझल हो रही है

मयस्सर कहाँ किसी को सपनों की दुनिया
ख़्वाहिशें हर क़दम तिल-तिल दम तोड़ रही हैं!
🌹 📌निचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें...🙏

💫Collab with रचना का सार...📖

🌄रचना का सार आप सभी कवियों एवं कवयित्रियों  को द्बादश प्रतियोगिता में स्वागत करता है..🙏🙏
*आप सभी 6 पंक्तियों में अपनी रचना लिखें। नियम एवं शर्तों के अनुसार चयनित किया जाएगा।

💫 प्रतियोगिता ¥12:- दरबदर भटकते हैं
थकी बोझिल आँखें लिए वो चेहरे
दर-ब-दर भटकते हैं मंज़िल की राह में

मंज़िल है कि मृगतृष्णा-सी हो चली है
कभी दिखती निकट ही कभी ओझल हो रही है

मयस्सर कहाँ किसी को सपनों की दुनिया
ख़्वाहिशें हर क़दम तिल-तिल दम तोड़ रही हैं!
🌹 📌निचे दिए गए निर्देशों को अवश्य पढ़ें...🙏

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🌄रचना का सार आप सभी कवियों एवं कवयित्रियों  को द्बादश प्रतियोगिता में स्वागत करता है..🙏🙏
*आप सभी 6 पंक्तियों में अपनी रचना लिखें। नियम एवं शर्तों के अनुसार चयनित किया जाएगा।

💫 प्रतियोगिता ¥12:- दरबदर भटकते हैं