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Unsplash हमने जब अपना हक मांगा हमने जब भी अपना हक

Unsplash हमने जब अपना हक मांगा

हमने जब भी अपना हक मांगा तो हैरानी हो गई। 
बोल पड़े हम घर में भाई फिर खींचातानी हो गई।

मुंह फेर लिया अपनों ने रिश्तेदार भी रूठ गए।
बड़े जतन से बांध रखा वो प्रेम के मोती टूट गए।

घर में दीवारें खिंच गई मकान बिकाऊ हो गया। 
समझदार थे उनका अब पुत्र कमाऊ हो गया।
 
कैसे बांध सके वो डोरी जलन पड़ी थी पांवों में। 
तुच्छ स्वार्थ से शूल बिछाए सूनी सी इन राहों में।

संभल संभलके चलते फिर भी धोखा मिलता है।
पांव से जमी खिसकती कभी फैसला हिलता है।

जिसका पलड़ा भारी होता लोग उधर हो जाते हैं। 
सलाह मशवरे आकर हमको रोज देकर जाते हैं।

रिश्तेदारों को भी जाने क्यों ये परेशानी हो गई।
हमने जब अपना हक मांगा तो हैरानी हो गई।

अपनी मेहनत हक का खाना बेईमानी हो गई।
न्याय की खातिर टूट पड़े तो खींचातानी हो गई।

©IG @kavi_neetesh
  #camping  Extraterrestrial life Entrance examination Hinduism Aaj Ka Panchang Kalki
हमने जब अपना हक मांगा

हमने जब भी अपना हक मांगा तो हैरानी हो गई। 
बोल पड़े हम घर में भाई फिर खींचातानी हो गई।

मुंह फेर लिया अपनों ने रिश्तेदार भी रूठ गए।
बड़े जतन से बांध रखा वो प्रेम के मोती टूट गए।

#camping Extraterrestrial life Entrance examination Hinduism Aaj Ka Panchang Kalki हमने जब अपना हक मांगा हमने जब भी अपना हक मांगा तो हैरानी हो गई। बोल पड़े हम घर में भाई फिर खींचातानी हो गई। मुंह फेर लिया अपनों ने रिश्तेदार भी रूठ गए। बड़े जतन से बांध रखा वो प्रेम के मोती टूट गए। #कविता

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