White आवाजें उठीं -ज़ब उसनें हाथों में करछी की जगह किताबें पकड़ना शुरू कर दिया, आवाजें उठीं - ज़ब उसनें स्वप्न देखना शुरू कर दिया, आवाजें उठीं -ज़ब उसनें बेड़ियों को पार कर लंघी चौखट, आवाजें उठीं -ज़ब बंध कर न रहने की जगह चुना उसनें उड़ना, आवाजें उठीं -ज़ब उसनें अपने पैरों पर खड़े होने की ज़िद पकड़ ली, आवाजें उठीं -हर कदम पर बाहरवालों के साथ-साथ घरवालों की, आवाजें उठीं..................... क्योंकि डर हैं समाज को किताबें ग़र इसने पढ़ ली तो तर्क देना शुरू करने लगेंगी डर था समाज को कहीं स्त्री अपने अधिकारों के लिए आवाज़ न उठा ले, कहीं बन न जाए वीरांगना लक्ष्मीबाई की तरह, समाज की बनाई बेड़ियों को कहीं तोड़ न दें, इसलिए स्त्री के विरुद्ध पल प्रतिपल, प्रत्येक क्षण खड़ा हो गया समाज...................................! ©nikita kothari #Womanslife