"क्या ये ही वतन परस्ती है?" पहन के चोला साधू का मिल जाते भेड़िए भेड़ों में, बन जाते हैं मंत्री जी जो सजायाफ्ता जेलों में, जान की कीमत मानव की यहां पशुओं से भी सस्ती है। क्या ये ही वतन परस्ती है? वतन के नाम पर जीना, वतन के नाम पे मरना, वतन के काम ना आए बता वो जिंदगी है क्या? वतन का नाम ले- लेकर, जो सत्ता को है हथियाते सत्तासीन के अधीन हो जाना क्या ये ही वतन परस्ती है? ©Vijay Vidrohi #Indialeader samraat satyawan silsila e mohobbat7 ashu