ये कैसी बेतुकी बातें फरमाते हो "हर्ष" क्या कहा... बेपनहा मोहब्बत हो मगर एक तरफा न हो... अगर हो भी जाए ये गुनाह मगर नादान को सजा न हो... जमाने में भला ऐसा भी कहा है मुमकिन ? दिया भी जले और तूफा न हो... क्या बेतुकी बातें फरमाते हो "हर्ष" बेइमतिहा मोहब्बत हो, मगर एक तरफा न हो... अगर हो भी जाए ये गुनाह और नादान को सजा भी न हो...