आसमाँ का पँछी बन उड़ चला तू, ज्वार-भाटा जीवन के न झेल सका तू हार मान ली तूने, सब छोड़ चला तू सबको किस भरोसे छोड़ गया तू। मुसीबतों का मज़ाक बनाता रहा ताउम्र, फिर काल का ग्रास कैंसे बन गया तू, जटिल क्षणों में भी परिहास तेरी खूबी थी, फिर क्यूँ उस पल हार गया तू, आसमाँ का पँछी बन उड़ चला तू। ©BS NEGI #आसमाँ का पँछी-1