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नहीं जानते तुम कि कैसे पल जाता है आदमी क्षुद्रत

नहीं  जानते तुम  कि कैसे पल जाता है
आदमी  क्षुद्रताओ की भीड़ मे
लालसओ के मकड़  जाल मे
परिग्रह के विराट  चक्रव्यूह मे
नहीं जानते तुम  उस आदमी को
जो बंदीगरहो के  अंधेरों  मे  जीता है
जो बेड़ियों से  बँधा है  जंजीरो  से जकड़ा है
और शायद इसीलिए वो "स्वतंत्रता "
की परिभाषा भी भूल  चूका है

©Arora PR
  नहीं  जानते  तुम
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Arora PR

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नहीं जानते तुम #कविता

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