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#अभिव्यक्ति-मन से कलम तक शक की बीमारी का ह

#अभिव्यक्ति-मन से कलम तक
      

शक की बीमारी का हक़ीम  लुकमान भी नहीं है।
शुबहा बेमुदावा है जिससे बचा इंसान भी नहीं है।

तजुर्बा तो और भी ज़्यादा तल्ख़तर  है कसम से-
ये वो शय है जिससे बचा तो भगवान भी नहीं है।

जितना रोना हो रो लें सदमे पे सदमे मिलते रहेंगे,
खुश वो है जिसमें एक रत्ती भर ईमान भी नहीं है।

ऐसा कोई नहीं जिसने किसी से उम्मीद ना की हो,
दिल पे बोझ हो शक का और परेशान भी नहीं है।

यही बे समर, बे रवायत बे नूर,बे कसूर है ज़िन्दगी,
"आदित्य" से बड़ा कोई मासूम नादान भी नहीं है आदित्य का साहित्य
#अभिव्यक्ति-मन से कलम तक
      

शक की बीमारी का हक़ीम  लुकमान भी नहीं है।
शुबहा बेमुदावा है जिससे बचा इंसान भी नहीं है।

तजुर्बा तो और भी ज़्यादा तल्ख़तर  है कसम से-
ये वो शय है जिससे बचा तो भगवान भी नहीं है।

जितना रोना हो रो लें सदमे पे सदमे मिलते रहेंगे,
खुश वो है जिसमें एक रत्ती भर ईमान भी नहीं है।

ऐसा कोई नहीं जिसने किसी से उम्मीद ना की हो,
दिल पे बोझ हो शक का और परेशान भी नहीं है।

यही बे समर, बे रवायत बे नूर,बे कसूर है ज़िन्दगी,
"आदित्य" से बड़ा कोई मासूम नादान भी नहीं है आदित्य का साहित्य
adityagupta2091

Aditya Gupta

New Creator