लंबे थकाऊ सफर में रुककर थोड़ा सुस्ताना। धूप में अलसाने के बावज़ूद रात की रानी का महक जाना कुछ ऐसा ख़ुशगवार था छतों पर शाम बिताना। अब मकान बहुमंजिला हुए कमरे तक सिमटा आना जाना। अब ना, छत अपनी, ना चौबारे सोसायटियों का अब है जमाना। ना शाम का पता, ना रात का ठिकाना वक़्त- बेवक़्त होता है घर आना जाना। मजबूरियों ने छीने आँखों से हसीन मंज़र, वरना कौन नहीं चाहता, छत पर शाम बिताना..? लंबे थकाऊ सफर में रुककर थोड़ा सुस्ताना। धूप में अलसाने के बावज़ूद रात की रानी का महक जाना कुछ ऐसा ख़ुशगवार था छतों पर शाम बिताना।