घर में तैयार वास्तविक रूप को देखा ही नहीं बस अपनी सोच में जीती हूं बुजदिल बन गई हूं छोटी सोच वालो के बीच रह कर अब अपने आप से सिकायते करती हु काफी हद तक दुनियां बदल गई है में एक दीवार बदलते बदलते टूट गई हूं बेवकूफ कहने वाले पे हंसते हंसते अब मैं खुद पर हंसने लगी हूं मुझे कफ़न भी अमन से भरा चाहिए था बड़े शोर में आरजू के साथ दफ़न हो रही हूं किसे बताऊं अपनी उलझने फरेब से भरी दुनियां में कलम भी सांस तोड़ रही है में क्या चीज़ हूं फिर रास्ता ढूंढते ढूंढते आज ख़ुद को खत्म कर दिया आंखो से ज्यादा उम्मीद क्या रखी जाये अपने ही जब हैसीयत बताते हों हम अपनी ऐब से कैसे अच्छाइयां चुनते हमे पग पग पर अपनी बिबस्ता से जोड़ा गया मेरा हर लफ्ज़, मुशायरा और लम्हा बहुत वक्फा सा है जहा और कुछ नहीं है सिवा धुआं के में इसी धुएं में खुशियां पल पल खोज रही हूं ©Khushbu mavar #OneSeason #i #L♥️ve #object #na falak khan chisti