देखा मैंने एक परिंदा रूप सुनहरा प्यारा उसका रोज़ आना उसका खिड़की पर बंधा कटोरा भरा दाना उसका देखना उसका मुझको भाता फहलाकर पंख वो फिर उड़ जाता आईना खिड़की का क्या उसने देखा खुद में खुद का साथी खौजता लहूलूहान चोंच से वो दर्द मुझे दिखता झूठ़ परछाई से तू क्यों मोह धरता मैं कहता उड़ा हाथ से मैं उसे भगाता मेरा प्यारा जो वो ठ़हरा परछाई भी धोखा देती कभी आईना जब खुद आईना होता है 🌻🙄🌺🌸🌷 देखा मैंने एक परींदा रूप सुनहरा प्यारा उसका रोज़ आना उसका खिड़की पर बंधा कटोरा भरा दाना उसका