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अपनो से बहुत दूर कमाने निकले हैं, हम भी खुद को आज

अपनो से बहुत दूर कमाने निकले हैं,

हम भी खुद को आजमाने निकले हैं।


ऊंचाइयों को छूने की तमन्ना है दिल में,

परिंदे, पंखों की उड़ान दिखाने निकले हैं।


देखें थे जो सपने, अपने घर के आँगन में,

इस भीड़ में अपना वजूद बनाने निकले हैं।


आवारा थे, अब हम थोड़ा संभल कर चलेंगे,

थोड़े कर्ज चुकाने ,थोड़े फर्ज निभाने निकले हैं।


भटकते हुए कही अटक ही जायेंगे ," केशव",

दाने की तलाश में, दरवाजे खटखटाने निकले हैं।

©keshav #citylife #shayaari #hindi_poetry 
#Hindi #Poetry  #Poetry
अपनो से बहुत दूर कमाने निकले हैं,

हम भी खुद को आजमाने निकले हैं।


ऊंचाइयों को छूने की तमन्ना है दिल में,

परिंदे, पंखों की उड़ान दिखाने निकले हैं।


देखें थे जो सपने, अपने घर के आँगन में,

इस भीड़ में अपना वजूद बनाने निकले हैं।


आवारा थे, अब हम थोड़ा संभल कर चलेंगे,

थोड़े कर्ज चुकाने ,थोड़े फर्ज निभाने निकले हैं।


भटकते हुए कही अटक ही जायेंगे ," केशव",

दाने की तलाश में, दरवाजे खटखटाने निकले हैं।

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