*सबक जो भूल रहे हैं* *कोरोना काल ने सिखाया है रिश्तों में अपनापन रखो और नौकरी वहांँ करो जहाँ परिवार के साथ रह सको *लेकिन कुछ मूर्ख लोग अभी भी कुत्ते की दुम की तरह टेढ़े ही हैं..... परिवार से दूर रहकर नौकरी कर रहे हैं ....सोचो परिवार वालों की या आपकी जब तबियत खराब हुई... और छुट्टी नहीं मिली..तो देखभाल कौन करेगा???? क्या फोन पर एक ग्लास पानी पीने भेजोगे या पीने मंगवाओगे??? जो इकलौते सपूत हैं माता पिता की उन पर जिम्मेदारी है ऐसे में जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ कर कब तक नौकरी के सुख भोगोगे??? नौकरी सरकारी हो तो मजबूरी हो जाती है कि कैसे बार बार आयें जायें कितनी छुट्टी लें .. *लेकिन प्राइवेट नौकरी है तो स्थानीय करने में ही फायदा है..मान लो दूसरे शहर में दस साल तक नौकरी निर्विघ्न कर ली जब सब कुछ सेट हो गया फिर अचानक बूढ़े मां-बाप की तबियत खराब रहने लगे तब क्या बुढ़ापे में मां बाप को तरसाओगे मिलने के लिए?? सेवा के लिए??या नौकरी छोड़ कर आ जाओगे उनकी देखभाल के लिए?? फिर ओवर एज में कौन नौकरी देगा?? नये सिरे से कर पाओगे शुरुआत?? एक बात ध्यान रखो प्राइवेट नौकरी में टिके रहना महत्वपूर्ण होता है उसी पर प्रमोशन और इंक्रीमेंट निर्भर करते हैं तो बहुत सोच समझकर ही नौकरी की जगह चुनना जिसमें तालमेल बना रहे.... *वरना घर के रहोगे ना घाट के*..... क्योंकि मेलजोल न रहे,तो सगे भी अजनबी हो जाते हैं और भावनायेँ मर गईं तो .... कितने भी पैसे कमा लो , खूब एशो-आराम कमा लो अपनी अहमियत हमेशा के लिए खो दोगे परिवार वालों की नजर में। *और मिलेंगे सिर्फ ताने कि जब जरूरत थी तब तो दर्शन भी दुर्लभ थे।* एक और विशेष बात *अगर समय पर बीमार माता पिता की सेवा नहीं कर सकते तो उनकी वसीयत में अपनी भागीदारी भी मत लेना.. उस समय भी छुट्टी लेकर मत आना ये जानने कि वसीयत में तुम्हारा हिस्सा कितना है ।* लेखिका/कवयित्री-प्रतिभा द्विवेदी मुस्कान© सागर मध्यप्रदेश भारत (06 फरवरी 2023 ) ©Pratibha Dwivedi urf muskan #प्रतिभा #प्रतिभाउवाच #प्रतिभाद्विवेदीउर्फमुस्कान© #प्रतिभाद्विवेदीउर्फमुस्कानकीकलमसे #स्वरचितविचार #परिवार #नौकरी #अपना #पराये #diary Ayushi Agrawal Sonika Pal