"टूटी-बिखरी चीज़े" फ़ेंकनें का मन नहीं करता टुटी-बिखरी चीज़ों को फ़िजूल में कोई कोनां यें घेरें रहतीं हैं कुछ वक्त बीता हैं इनकें साथ जो यूं समेटें रहतीं हैं कुछ रंगीन है कुछ ग़मगींन है कुछ ख़ामोश, कुछ़ संगीन हैं बीते वक्त की इक याद इन संग पड़ी हैं फ़ेंकनें का मन नहीं करता, फ़िजूल में कोई कोनां यें घेरें रहतीं हैं.... Full Poetry read in caption... फ़ेंकनें का मन नहीं करता टुटी-बिखरी चीज़ों को फ़िजूल में कोई कोनां यें घेरें रहतीं हैं कुछ वक्त बीता हैं इनकें साथ जो यूं समेटें रहतीं हैं कुछ रंगीन है कुछ ग़मगींन है कुछ ख़ामोश, कुछ़ संगीन हैं बीते वक्त की इक याद इन संग पड़ी हैं फ़ेंकनें का मन नहीं करता, फ़िजूल में कोई कोनां यें घेरें रहतीं हैं कुछ ख़िलौनें टूटें पड़ें कुछ कपड़ें धूल में सनें हैं 'क ख़ ग', 'A B C' की नोटबुक, रंगों की ड़िब़्बी बेढ़ाल पड़ी हैं