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लोहे का स्वाद लोहार से मत पूछो, उस घोड़े से पूछो ज

लोहे का स्वाद लोहार से मत पूछो,
उस घोड़े से पूछो जिसके मुंह में लगाम है।
                       ---सुदामा पाण्डेय धूमिल 

कवि  धूमिल  ने अपने  काव्य  की इन पंक्तियों में 
समाज की शोषण व्यवस्था पर कड़ा प्रहार किया 
है।  इसके लिए उन्होंने "घोड़ा", "लोहा" और घोड़े 
के मुंह में  "लगाम"  को अपने काव्य में प्रतीक के 
रूप में लिया है। कवि धूमिल जी ने इन्हीं प्रतीकों 
का  प्रयोग  करते  हुए  अपने काव्य में लोहार को 
"शोषक",  घोड़े  को  "शोषित" और मुंह में लगाम 
को शोषित  पर "अंकुश"  व्यक्त करते हुए समाज 
के बद्धिजीवीयों व बलशाली व्यक्तियों से आह्वान 
किया  है  कि  वे  सब  एकजुट होकर शोषितों के 
कष्टों को दूर करने को आगे आयें।

©Dr Bibhash C Jha
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