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कभी सोचा है आपने की हम जितना अपने दुखों को पकड़ क

कभी सोचा है आपने की हम 
जितना अपने दुखों को पकड़ कर रखते हैं 
उतना सुखों को क्यों नहीं , शायद

लम्बे समय तक ठहरे दुख अपने से हो जाते हैं ,
और सुख हमें बाहरी जगत से जोड़ता है
जबकि दुख स्वयं से मुलाक़ात करवाता है ,

ठीक वैसे ही जैसे हम 
सुखों में संगीत का आनंद लेते हैं,
दुखों में गीत के बोल समझते है
शायद इसीलिए हम उम्र से नहीं 
हम अपने झेले हुए दुखों से परिपक्व होते हैं...!

@Pandey .A. Harsh.                             #Safar - Talks #Anjafi Ritika suryavanshi Shiuli
कभी सोचा है आपने की हम 
जितना अपने दुखों को पकड़ कर रखते हैं 
उतना सुखों को क्यों नहीं , शायद

लम्बे समय तक ठहरे दुख अपने से हो जाते हैं ,
और सुख हमें बाहरी जगत से जोड़ता है
जबकि दुख स्वयं से मुलाक़ात करवाता है ,

ठीक वैसे ही जैसे हम 
सुखों में संगीत का आनंद लेते हैं,
दुखों में गीत के बोल समझते है
शायद इसीलिए हम उम्र से नहीं 
हम अपने झेले हुए दुखों से परिपक्व होते हैं...!

@Pandey .A. Harsh.                             #Safar - Talks #Anjafi Ritika suryavanshi Shiuli

#Anjafi Ritika suryavanshi Shiuli #safar