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हसीना उतार देती दुपट्टा,अपनी अस्मत का! जब कोई बाद

 हसीना उतार देती  दुपट्टा,अपनी अस्मत का!
जब कोई बादशाह सरहद पर अपना शीश चढाता है

बेगम के गम सारे तब्दील हो जाते ,,,,,यादो के सपनो में
दिवाना कोई रहमान का तिरंगा झण्डा  लहराता है

मालकियत है जो मिट्टी , मुसलमाँ की मुहोब्बत है
मादरे वतन की जय घोष,यह पहचान मुसलमाँ है
 हसीना उतार देती  दुपट्टा,अपनी अस्मत का!
जब कोई बादशाह सरहद पर अपना शीश चढाता है

बेगम के गम सारे तब्दील हो जाते ,,,,,यादो के सपनो में
दिवाना कोई रहमान का तिरंगा झण्डा  लहराता है

मालकियत है जो मिट्टी , मुसलमाँ की मुहोब्बत है
मादरे वतन की जय घोष,यह पहचान मुसलमाँ है

हसीना उतार देती दुपट्टा,अपनी अस्मत का! जब कोई बादशाह सरहद पर अपना शीश चढाता है बेगम के गम सारे तब्दील हो जाते ,,,,,यादो के सपनो में दिवाना कोई रहमान का तिरंगा झण्डा लहराता है मालकियत है जो मिट्टी , मुसलमाँ की मुहोब्बत है मादरे वतन की जय घोष,यह पहचान मुसलमाँ है