कुछ घरों में मैं मेहमान बन कर जाती हू , तो घिर जाती हू चारों और से, मिठाई पकवान आते है चारों और से। कुछ घरों में मैं मेहमान बन के जाती हूँ, तो छा जाता है सन्नाटा चारों और से , जहाँ पानी का गिलास भी कोई चार बार कहे से लाता है, खाने की बात तो छोड़ो कब घर से जाओगे ये चारो और से आता है। कुछ घर मेरे अपने है , कुछ घर अपने होकर भी पराये है, कुछ घर मेरी गाव की गलियों जैसे छोटे, पर दिल के बहुत ही आलिशान है, कुछ घर उस शहर की चार दिवारो जैसे , जो सिर्फ आराईश का हिस्सा बन पाती है, मैं ऐसे घरों से यास होकर लौट आती हू। -cashew.. ©Deepali Sharma mehaman