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समाज की नींव तो रख दी स्त्री ने, समझ की नींव मर्द

 समाज की नींव तो रख दी स्त्री ने,
समझ की नींव मर्दो की थोड़ी अहंकारी है..!

औरत कल भी पुरषों पर भारी थी,
और आज भी पुरषों पर भारी है..!

खींचातानी कभी जुबानी,
जंग पद की जैसे जारी है..!

सोच सोच का फर्क है इतना किसी की पक्की,
किसी की मिट्टी सी ढहती कमजोर दीवारी है..!

औरत सहज सर्वगुण सर्वदा सर्वोत्तम संस्कारी है,
पुलिंदा बना महज ताक़त का ये सब बेकारी है..!

औरत दया करुणा हमदर्दी औरत परोपकारी है,
समाज की नींव को मजबूती देती मजबूत इरादों की तैयारी है..!

औरत बना दे रंक को राजा भी,
ये सब औरत की ही समझदारी है..!

योगदान रहा स्त्रियों का सदा महत्वपूर्ण,
फिर भी कहीं न कहीं थोड़ी लाचारी है..!

स्त्रियों की जो न करे फिर इज्जत,
ये समाज की सबसे बड़ी बिमारी है..!

©SHIVA KANT
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