बहुत ’छेद’ हैं संविधान में, अपराधी बच जाते हैं, गूंगी, बहरी न्यायमूर्तियां, न्याय नहीं कर पाते हैं। ’सत्तर’ वर्ष हो गए पूरे, वृद्ध हो गए शायद तुम, झुकी कमर, दृष्टि बाधित, रुदन भी ना सुन पाते तुम।। रोज घिनौने अपराधों से, पटे हुए अखबार हैं, ठगी, डकैती, हत्याएं हैं, दर्जन बलात्कार हैं।। ’एक वर्ष’ पूरा ना होता, दुनियां आए, बिटिया को, चबा जा रहे बलात्कारी, कुछ महिनों की गुड़िया को।। बच्ची, जवान, महिला, वृद्धा, सबमें बैठा डर भारी, घूम रहे हैं वहशी दरिंदे, कैसी देश की लाचारी।। ’संविधान’! यदि तुम जीवित हो, उठो! न्याय दो! भारत को, काट जड़ें सब ’विष वृक्षों’ की, यम शक्ति का भान दो।। ©Tara Chandra #hangtherapist