क्यों हाँथ की लकीर होना चाहते हो? संग हमारे तुम फ़क़ीर होना चाहते हो। जो रखकर सीने में सोता हूँ रात भर, क्यों तुम वही तस्वीर होना चाहते हो? जो मुजरिमों को पड़ती बेड़ियों की तरह, क्यों तुम वही जंजीर होना चाहते हो? जो गर्दनों को धड़ से उखाड़ फेंके, क्यों तुम वही शमशीर होना चाहते हो? हमने तो तुम्हे चाहा मजनुओं की तरह, क्यों तूम राँझे की हीर होंना चाहते हो? हमने तो तुम्हें कुल्लू-मनाली समझ लिया, क्यों तुम शर्दियों में कश्मीर होना चाहते हो? क्यों हाथ की लकीर होना चाहते हो? संग हमारे तुम फ़क़ीर होना चाहते हो। अमित साहू✍️ #lostinthoughts