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आज के रामायण भाग में किसीने श्री राम जी और सिया जी

आज के रामायण भाग में किसीने श्री राम जी और सिया जी का शुभ विवाह समारोह देखा क्या?
क्या किसीने ध्यान दिया कि जब सिया जी श्री राम जी को वरमाला डाल रही थीं तो राम जी ने स्नेह सहित अपना सर झुकाकर वरमाला अपने गले मे डलवाई थी।
मानो वो सिया से कह रहे हों कि हे सीता, मुझे आपकी प्राप्ति स्वीकार है क्योंकि ये प्रेम और स्नेह का मिलन था, अकड़, अहसान और घमंड का नहीं।
आजकल के दूल्हे वरमाला के वक़्त ऐसे ऊंट जैसे गर्दन बढ़ाते हैं जैसे वो तीन लोक के देव हों, और शादी करके वो अपनी पत्नी पर बहुत बड़ा अहसान कर रहे हों।
वह इस स्नेह निमन्त्रण को सर झुकाकर स्वीकार करने को अपनी बेईज्जती समझते हैं। आज के रामायण भाग में किसीने श्री राम जी और सिया जी का शुभ विवाह समारोह देखा क्या?
क्या किसीने ध्यान दिया कि जब सिया जी श्री राम जी को वरमाला डाल रही थीं तो राम जी ने स्नेह सहित अपना सर झुकाकर वरमाला अपने गले मे डलवाई थी।
मानो वो सिया से कह रहे हों कि हे सीता, मुझे आपकी प्राप्ति स्वीकार है क्योंकि ये प्रेम और स्नेह का मिलन था, अकड़, अहसान और घमंड का नहीं।
आजकल के दूल्हे वरमाला के वक़्त ऐसे ऊंट जैसे गर्दन बढ़ाते हैं जैसे वो तीन लोक के देव हों, और शादी करके वो अपनी पत्नी पर बहुत बड़ा अहसान कर रहे हों।
वह इस स्नेह निमन्त्रण को सर झुकाकर स्वीकार करने को अपनी बेईज्जती समझते हैं।
#dearsdare  #ramayana #maryada  #vivah #sanskriti
आज के रामायण भाग में किसीने श्री राम जी और सिया जी का शुभ विवाह समारोह देखा क्या?
क्या किसीने ध्यान दिया कि जब सिया जी श्री राम जी को वरमाला डाल रही थीं तो राम जी ने स्नेह सहित अपना सर झुकाकर वरमाला अपने गले मे डलवाई थी।
मानो वो सिया से कह रहे हों कि हे सीता, मुझे आपकी प्राप्ति स्वीकार है क्योंकि ये प्रेम और स्नेह का मिलन था, अकड़, अहसान और घमंड का नहीं।
आजकल के दूल्हे वरमाला के वक़्त ऐसे ऊंट जैसे गर्दन बढ़ाते हैं जैसे वो तीन लोक के देव हों, और शादी करके वो अपनी पत्नी पर बहुत बड़ा अहसान कर रहे हों।
वह इस स्नेह निमन्त्रण को सर झुकाकर स्वीकार करने को अपनी बेईज्जती समझते हैं। आज के रामायण भाग में किसीने श्री राम जी और सिया जी का शुभ विवाह समारोह देखा क्या?
क्या किसीने ध्यान दिया कि जब सिया जी श्री राम जी को वरमाला डाल रही थीं तो राम जी ने स्नेह सहित अपना सर झुकाकर वरमाला अपने गले मे डलवाई थी।
मानो वो सिया से कह रहे हों कि हे सीता, मुझे आपकी प्राप्ति स्वीकार है क्योंकि ये प्रेम और स्नेह का मिलन था, अकड़, अहसान और घमंड का नहीं।
आजकल के दूल्हे वरमाला के वक़्त ऐसे ऊंट जैसे गर्दन बढ़ाते हैं जैसे वो तीन लोक के देव हों, और शादी करके वो अपनी पत्नी पर बहुत बड़ा अहसान कर रहे हों।
वह इस स्नेह निमन्त्रण को सर झुकाकर स्वीकार करने को अपनी बेईज्जती समझते हैं।
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