कब बीत जाते हैं लम्हे, फिर दिन,फिर से रात, फिर महीना और साल आया, उमर का क्या पता, कब सांसों का जाल आया, समय का चक्र है सब, बचपन से जवानी, जवानी से बुढ़ापा, हंसते खेलते दिन, फिर जिम्मेदारियों का बवाल आया, यूं ही सोचते सोचते खयाल आया, बैठे बैठे यूँ ही ख़याल आया... #यूँहीख़यालआया #collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi