बहुत चली थी बहुत टली थी सौ मन बोझ लेकर हर रोज़ पड़ी थी कितने भरे थे कितने तो लड़े थे मुझसे मुझ तक कुछ देर ही खड़े थे अब देखो बदला सब है सब कुछ अधले का भी अधला सब है जाऊंगी खाली पर बिठाऊंगी न सवारी बहुत कठिन थी हर रोज की ढावारी देखो अब मुझे सुकूं है मेरा जनून और नया कानून है खाली जाऊंगी पर तुम्हे न लाऊंगी हर रोज लड़ोगे मेरे लिए भिडोगे घंटों करोगे इंतजार रोजी रोटी पर हो जायेगा तुम्हारे आघात इधर भागोगे उधर भागोगे डोर न मिलेगी मंजिल के धागों के आधी खाली आधी सवारी कोरोना ने तो असली मार है मारी कभी में भी थी बेचारी आधी सवारी सवारी पर भारी निराश हताश अब तुम भी जाओगे खाली ©rashmi98 दिल्ली परिवहन पर #rain