औरत को आईने मे यूं उलझा दिया गया बखान करके हुस्न का दिल को बहला दिया गया न हक दिया जमीन का, न घर दिया गया गृह स्वामिनी के नाम का रूतबा दिया गया छूती रहीं पांव पति को परमेश्वर मानकर फिर कैसे इनको घर की गृहलक्ष्मी बना दिया गया चलती रहे चक्की, और जलता रहे चूल्हा इसलिये इन्हे, अन्नपूर्णा बना दिया गया न बराबर हक मिले और न चूं कर सके इसलिये इन्हे दुर्गा बना दिया गया यह डाक्टर, इंजीनियर और सैनिक भी बन गयी पर घर के चूल्हे ने इन्हे, औरत बना दिया सोना चांदी की हथकडी, नकेल, बेडियां, कंकन पाजेब, नथिनियां आदि जेवर से लाद दिया व्यभिचार लार आदमी, जब रोक न सका श्रृंगार साज वस्त्र पर तोहमत लगा दिया नारी ने जो ललकारा इस दानव प्रवृत्ति को जीभ निकाल रक्त प्रिय काली बना दिया नौ माह खून सीच के, बचपन जवां किया बेटों के नाम के आगे, बाप का नाम चिपका दिया गया औरत को यूं ही आईने मे उलझा दिया गया #समस्त #औरत को#समर्पितकविता