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मन की व्यथा सुनाऊं तो किसे ? कोई है अपना ।? शायद न

मन की व्यथा सुनाऊं तो किसे ?
कोई है अपना ।?
शायद नहीं.....
कौन जाने कितना टूटा हुआ है 
अंदर ही अंदर बिखर रहा है।

जख्म अब नीले या हरे नहीं होते 
कोई पूछे तो अब शब्दों में बयां नहीं होते ।

जो है ,अपना है,अपने तक ही रख लूं 
ना बताऊं किसी को ,
ये राज़ , राज़ ही रख लूं।।।

©manju Ahirwar
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