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ग़ज़ल **** खाई हैं इतनी ठोकरें राहे हय

ग़ज़ल
****
खाई    हैं    इतनी    ठोकरें    राहे   हयात   में*। 
फिर  भी  कमी  न  आई  कभी ख़्वाहिशात* में। 
*
निकलीं  हज़ार  ख़्वाहिशें  दिल  की  मिरे  मगर। 
अब  जीना  आ  गया  है  मुझे  मुश्किलात* में।।
*
तुम  हो  जफ़ा  सरिश्त*  तो  मैं हूँ वफ़ा परस्त*। 
दोनों   का   है   जवाब   कहीं   कायनात*   में।। 
*
उनकी निगाहे कह्र* का कल तक जो था हदफ़*।
क्यों है    वो  आज   दाइरहे     इल्तिफ़ात*   में।। 
*
"ऋषिका"  आ   गया  हमें  जीने  का  अब  हुनर। 
मिलता   है  इक  सुकून  सा  सोज़े  हयात*  में।। 
*

©rishika khushi राहे हयात*ज़िन्दगी की राह, 
मुश्किलात * मुसीबतें, 
ख़्वाहिशात*इच्छाएँ, 
सरिश्त*मिज़ाज, 
वफ़ा परस्त*वफ़ा को पूजने वाला, 
कायनात*दुनिया, 
कुफ़्र*पाप(ईश्वर को नहीं मानना) 
निगाहे कह्र*ग़ुस्से वाली नज़र,
ग़ज़ल
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खाई    हैं    इतनी    ठोकरें    राहे   हयात   में*। 
फिर  भी  कमी  न  आई  कभी ख़्वाहिशात* में। 
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निकलीं  हज़ार  ख़्वाहिशें  दिल  की  मिरे  मगर। 
अब  जीना  आ  गया  है  मुझे  मुश्किलात* में।।
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तुम  हो  जफ़ा  सरिश्त*  तो  मैं हूँ वफ़ा परस्त*। 
दोनों   का   है   जवाब   कहीं   कायनात*   में।। 
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उनकी निगाहे कह्र* का कल तक जो था हदफ़*।
क्यों है    वो  आज   दाइरहे     इल्तिफ़ात*   में।। 
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"ऋषिका"  आ   गया  हमें  जीने  का  अब  हुनर। 
मिलता   है  इक  सुकून  सा  सोज़े  हयात*  में।। 
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©rishika khushi राहे हयात*ज़िन्दगी की राह, 
मुश्किलात * मुसीबतें, 
ख़्वाहिशात*इच्छाएँ, 
सरिश्त*मिज़ाज, 
वफ़ा परस्त*वफ़ा को पूजने वाला, 
कायनात*दुनिया, 
कुफ़्र*पाप(ईश्वर को नहीं मानना) 
निगाहे कह्र*ग़ुस्से वाली नज़र,

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