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सोचो ज़रा इक दफ़ा तुम यूँ जो हर दफ़ा बिचारे न होत

सोचो ज़रा इक दफ़ा

तुम यूँ जो हर दफ़ा बिचारे न होते तो क्या होता,
वादे निभाने में जो इतने नकारे न होते क्या होता,

मैं तो डूबा रहा दरिया-ए-इश्क़ में, तुम्हारी ख़ातिर,
सब निहारते हुए तुम किनारे न होते तो क्या होता,

गुड़-घुली बातें कर, तुम्हारा मान भी बढ़ाया मैंने ही,
तुम्हारे अल्फ़ाजों में, ये अंगारे न होते तो क्या होता,

मेरी आवारगी ने तो मुझे हद तोड़ने की हद में रखा,
तुम वो दूसरी क़िस्म के आवारे न होते तो क्या होता,

मौके तुम्हें बदनाम करने के “साकेत" के पास भी थे,
सोचो तो ज़रा कि तुम मुझे प्यारे न होते तो क्या होता।

IG:— @my_pen_my_strength

©Saket Ranjan Shukla सोचो ज़रा इक दफ़ा..!
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✍🏻Saket Ranjan Shukla
All rights reserved©
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सोचो ज़रा इक दफ़ा

तुम यूँ जो हर दफ़ा बिचारे न होते तो क्या होता,
वादे निभाने में जो इतने नकारे न होते क्या होता,

मैं तो डूबा रहा दरिया-ए-इश्क़ में, तुम्हारी ख़ातिर,
सब निहारते हुए तुम किनारे न होते तो क्या होता,

गुड़-घुली बातें कर, तुम्हारा मान भी बढ़ाया मैंने ही,
तुम्हारे अल्फ़ाजों में, ये अंगारे न होते तो क्या होता,

मेरी आवारगी ने तो मुझे हद तोड़ने की हद में रखा,
तुम वो दूसरी क़िस्म के आवारे न होते तो क्या होता,

मौके तुम्हें बदनाम करने के “साकेत" के पास भी थे,
सोचो तो ज़रा कि तुम मुझे प्यारे न होते तो क्या होता।

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